एक लड़की
सहती हर वक्त जो कठिनाइयाँ,
देती हर वक्त जवाब जो समाज को,
क्रोध जिसका जब जब बाहर निकला हैं
दानवों हरण करके ही पिघला हैं
समाज जिस पर निंदा कर आरोप लगा देता ...
कठघरे में हर वक्त जिसको पहुँचा देता,
हर कदम पर ,हर सांस उसको संभाल कर लेनी पड़ती है
"लड़की बन कर आई हो दुनिया में "ये रीत सहनी पड़ती है...
देवी जिसको बोला जाता,
अपहरण उसका कर लिया जाता,
लाँछन उसपे लगाया जाता,
अपमानित उसे किया जाता,
फिर माँ कहके उसको ही पुकारा जाता....
माँ कहके उसको ही पुकारा जाता।
जीवन उसका समाज से चलता हैं
समाज की रीत से जीवन उसका ढलता हैं...
भगवान ने पर्याय उसको ऐसा दिया,
कर्मों का फल चुकाना, लकीर में उसकी लिख दिया...
पर दरिंदे इस पृथ्वी पे ,जीने उसको नही देते है...
पैदा करदे जब एक बेटी एक बेटी तो ,साँसे उसकी छीन लेते है....
भारत माँ के लाल बोलते है खुद को
और नीच नज़रो से औरत को दखते है....
दरिंदे है ऐसे जो खुद को इंसान समझ लेते है...
समय का चक्र भी इक दिन पलटेगा ,
दौर आएगा ऐसा जब नारी का साशन ही चमकेगा...
नारी का साशन ही चमकेगा।
-अक्षरा जैन
bahot sahi
ReplyDeletekeep going
ReplyDeleteYes sure..
DeleteNicely written👌👌👍
ReplyDeleteThanks soham..
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVery well written........... Loved to read.......... Good going......... Keep it up.........
ReplyDeleteTysm tiwari ji..
DeleteVery nice ....... !!
ReplyDeleteThank you..
DeleteVery nice ....... !!
ReplyDeleteA wonderful poem, Akshara. Quite a few memorable lines. Keep writing and I'm sure you'll reach the zenith of success soon.
ReplyDeleteThanks a Lot ma'am😊 Your guidance will help alot .😊
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